राजस्व न्यायालय और न्यायिक संरक्षण
*****सिविल न्यायालयों को न्यायिक संरक्षण,*****
यह मुद्दा पिछले कई बर्षों से चल रहा है, एक दिवस पूर्व मध्यप्रदेश शासन द्वारा इस संबंध में आदेश जारी कर सिविल न्यायालयों को न्यायिक संरक्षण की बात दोहराई गई है, हालाँकि यह नई बात नहीं है यह पूर्व से ही कानून में दिया गया है बस पुलिस अधिकारियों के द्वारा इसकी व्याख्या अपने तरीके से की जाती थी,
क्या होता है न्यायिक संरक्षण, इस पर मैं अभी ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा इसके लिए आप गूगल कर सकते हैं या यूं समझ सकते हैं कि जैसे जिला या अन्य सभी न्यायालयों में न्यायाधीश को जो अधिकार या संरक्षण दिया जाता है राजस्व अधिकारी भी वैसा ही कुछ आंशिक रूप से चाहते हैं ।
मतलब सरल भाषा मे कहें तो उनके द्वारा दिये गए निर्णय के विरुद्ध अपील तो हो सकती है पर कानूनी कार्यवाही जैसे FIR नहीं,(इस विषय को कभी विस्तार से लिखूंगा)
पहली बात तो यह क्या राजस्व न्यायालय सच मे न्यायालय हैं, तो हाँ यह महज़ प्रशासनिक अधिकारी ही नहीं हैं, उन्हें प्रशासनिक के साथ साथ न्यायिक अधिकार भी होते हैं यही इस कैडर का आकर्षण भी है जो PSC की तैयारी और उसमे सबसे ऊपर इसकी प्राथमिकता को तय करता है,
सभी राजस्व अधिकारी ,संरक्षण तो न्यायिक चाहते हैं पर अधिकार प्रशासनिक , क्योंकि न्यायिक सहिंता उन्हें या उनके रुतवे को शूट नहीं करती,इसके अलावा कुछ हद तक इसकी जरूरत भी है, क्योंकि जब निर्णय के खिलाफ अपील का प्रावधान है ,जो सभी न्याय के सिद्धन्तों के लिए अनिवार्य है तो फिर निर्णय के लिए किसी को व्यक्तिगत दोष देना ठीक नहीं ,इसके अलावा निर्णय कभी व्यक्तिगत नहीं होता सभी निर्णय भू राजस्व सहिंता के नियम और निम्न कर्मचारियों के प्रतिवेदन व अनुभव को समेटे हुए रहते हैं,
इसके अलावा जिस जगह सरकार को सबसे ज्यादा काम करने की जरूरत है उस पर ध्यान नहीं दिया जाता,
राजस्व न्यायालयों में वर्क लोड इतना ज्यादा है कि कल्पना नहीं की जा सकती वो एक ऐसे अधिकारी ,कर्मचारी हैं जिनसे कुछ भी कराया जा सकता है,
उनका व्यक्तिगत जीवन पूरी तरह से प्रभावित रहता है,
साथ ही उन्हें न्यायिक प्रशिक्षण न के बराबर दिया जाता है जिससे कई बार उनके व्यावक्तित्व या निर्णय में न्यायिक कमी दिखाई देती है,
संसाधन का अभाव बड़े पैमाने पर है, कर्मचारी नहीं है, एक फ़ाइल मंगाने तक का बजट तहसील कार्यालयों में नहीं होता,
संसाधन , प्रशिक्षण और पुलिस से तालमेल या संयुक्त प्रशिक्षण जो पुलिस में भी राजस्व की समझ विकसित करे, इसकी बहुत जरूरत है, सरकार उन्हें उनके हाल पर न छोड़े वल्कि एक व्यवस्थित ,भरोसेमंद (सभी पक्षों से सहमत),पारदर्शी व्यवस्था बनाये,व इस पर गौर करे
मनीष भार्गव
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