गेंहूँ और इंसान की जीवन यात्रा
आज लंबे समय बाद अपने खेत पर पिताजी के साथ जाना हुआ, इस समय गेंहूँ की फसल खड़ी है, कुछ खेतों के गेंहूँ कट चुके हैं तो कुछ खेतों के गेंहूँ पक कर कटने के इंतजार में हैं,वहीं कुछ अभी पकने के इंतजार में हैं जो अब तक हरे हैं, शायद देरी से बोने के कारण कुछ गेंहूँ अपना समय चक्र पूरा नहीं कर पाए,
इन गेहूं को देखकर पूरी जीवन यात्रा याद आगयी कैसे 'बीज से बीज बनने तक सफर ' गेंहूँ तय करता है,इसी सफर में कभी टूटता है, कभी जलता है ,कभी ओले या अन्य आपदाओं से नष्ट होता है ,तो कभी किसी के कर्ज से घटता- बढ़ता है, गेंहूँ को कर्ज पटाना होता है ,अपने मालिक का, कभी पेट भरकर ,कभी अपने को बेच कर, कभी कभी आंदोलन में दिखने भी जाना होता है।
जैसे इंसान अपनी यात्रा तय करता है विल्कुल वैसे ही,
कुछ की यात्रा पूरी हो चुकी,कुछ अंतिम चरण में हैं,तो कुछ ऐसे हैं जो अभी इंतजार में हैं,जो इंतजार में हैं उन्हें डर है और सबके साथ आगे बढ़ने की छटपटाहट भी,डर इसका कि ओले,तूफान उन्हें विना दुनिया मे योगदान दिए नष्ट न करदें ,छटपटाहट इसका कि मेरे परिवर का दूसरा मुझसे आगे कैसे निकला, ऐसा न हो आगे वाला खाने के काम मे आये और पुण्य प्राप्त करे ,और मैं बेचने के काम मे आऊं और कर्ज का हिस्सा बनूँ,
जो आगे निकला उसे इस बात का अफसोस है कि मेरी बजह से किसी को कर्ज लेना पड़ा,मुझे खाद और मशीनों की तड़प को सहन करना पड़ा ,बेचने का भी, खाने का भी ,यह सभी डर उसे भी है ।
दुःख सभी को है,
किसी को आगे निकलने का ,किसी को पीछे रहने का
यात्रा का आनंद कोई नहीं ले रहा, सब आगे बढ़ने की होड़ में हैं, हर कोई मंजिल की दौड़ में है, सच यही है कि मंजिल है ही नहीं ,सिर्फ सफर ही है जो तय करना है, आपको भी ,मुझे भी, गेंहूँ को भी
मनीष भार्गव
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